Detailed Notes on hindi poetry

मंगल और अमंगल समझे मस्ती में क्या मतवाला,

जिनमें वह छलकाती लाई अधर-सुधा-रस की हाला,

आने वाले नए विश्व में तुम भी कुछ करके दिखाना

बड़ी पुरानी, बड़ी नशीली नित्य ढला जाती हाला,

आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।।२।

बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला!।५०।

प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,

भारत के उन्नत ललाट को जग में ऊँचा और उठाना।।

साकी बन आती है प्रातः जब अरुणा ऊषा बाला,

सूर्य बने मधु का विक्रेता, सिंधु बने घट, जल, हाला,

बार बार मैंने आगे बढ़ आज नहीं माँगी हाला,

छेड़छाड़ अपने साकी website से आज न क्यों जी-भर कर लूँ,

भरी हुई है जिसके अंदर पिरमल-मधु-सुरिभत हाला,

आएँ वो शौक़-ए-शहादत जिन के जिन के दिल में है 

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